जान लो मासिक धर्म के कितने दिन बाद पूजा करनी चाहिए या नहीं

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महिलाओं के लिए पीरियड्स का आना अच्छा माना जाता है लेकिन जब मासिक धर्म पूजा के दौरान आते है तो आपको मासिक धर्म के कितने दिन बाद पूजा करनी चाहिए यह सब आपको आज हम बता रहें हैं आपको पत्ता होना चाहिए कि मासिक धर्म में पूजा करना चाहिए या नहीं, अक्सर महिलाऐ कुछ गलतियां कर देती हैं जिस कारण उनकी पूजा असफल हो जाति है उनको भारी कष्ट का सामना करना पड़ सकता है।

मासिक धर्म के कितने दिन बाद पूजा करनी चाहिए

आमतौर पर यह माना गया है कि जब महिलाओं को मासिक धर्म होता है तो मासिक धर्म के 4 दिन बाद महिलाओं को पूजा करनी चाहिए, ताकि उनकी पूजा में बिना व्यवधान के वह सफल हो सके, इस दौरान आपको पूजा में बनने वाले प्रसाद या पूजन सामग्री को तैयार करने से भी दूर रहना चाहिए। यह आपको तब तक करना होगा जब तक आपके मासिक धर्म को 4 दिन न हो जाएं।

इस दौरान पीरियड से गुजरने वाली महिलाओं को पूजा के लिए भोग नहीं तैयार करना चाहिए। इस दौरान महिलाओं का पूजा स्थल पर जाना वर्जित होता है। पूजा की किसी भी सामग्री को स्पर्श नहीं करना चाहिए। अगर पाचंवे दिन कोई महिला पीरियड्स में रहती है तो ऐसे स्थिति में परिवार के किसी सदस्य के द्वारा पूजन और हवन करवाना चाहिए।

मासिक धर्म में पूजा करना चाहिए या नहीं

हिन्दू नियमो के अनुसार, मासिक धर्म या माहवारी (Periods) के दिनों में महिलाओं को धार्मिक कार्यों ( पूजा पाठ ) में शामिल नहीं होना चाहिए। इसको लेकर बहुत सारे विचार है की महिलाओ को क्या करना चाहिए क्या नहीं।मासिक धर्म या माहवारी दिनों में महिलाओं को मंदिर जाने की इजाजत नहीं होती साथ ही पूजा पाठ के सामान और मूर्ति को हाथ लगाना भी अशुभ माना जाता है।

जी हां, ये तो सही है कि मासिक धर्म के समय महिलाओं को पूजा-पाठ इत्यादि करने से मना किया जाता है। पहले के जमाने में तो नियम बहुत हि कड़े और कष्ट दायी थे। पुराने वक्त में पीरियड्स के समय महिलाएं जमीन पर चटाई बिछाकर सोती थी, किसी कार्य में भाग नहीं लेती थी, यहां तक कि रसोई घर में भी उन्हें जाने से मना किया जाता था। अच्छी बात ये है कि बदलते जमाने के साथ लोगों की सोच भी बदली है और पहले की अपेक्षा धीरे धीरे ही सही पर समाज में इन चीजों को लेकर जागरुकता फैली है।

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पीरियड्स के दौरान पूजा की मनाही क्यों

पुराने समय में जो भी मान्यताएं बनाई गई हैं, उनके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक तथ्य था। लेकिन उस तथ्य को न तो समझने का प्रयास किया गया और न ही समझाया गया, इसलिए वो मान्यता अंधविश्वास और कुप्रथा में बदल गई. पीरियड्स के दौरान पूजा पाठ न करने के पीछे वजह ये है कि पुराने समय में पूजा पद्धति मंत्रोच्चार के बिना पूरी नहीं होती थी। इसके अलावा बड़े बड़े अनुष्ठान किए जाते थे, जिसमें काफी समय और ऊर्जा खर्च होती थी।

मंत्रोच्चार को पूरी शुद्धता के साथ किया जाता था। पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलावों के चलते काफी दर्द और थकान जैसी रहती है। ऐसे में महिला के लिए लंबे समय तक बैठकर मंत्रोच्चारण या अनुष्ठान करना संभव नहीं होता था।

इसके अलावा पूजा में हमेशा शुद्धता का खयाल रखा जाता है. लेकिन पुराने समय में पीरियड्स के दिनों में स्वच्छता को बनाए रखने के बहुत साधन भी नहीं हुआ करते थे। इस कारण महिला के वस्त्र वगैरह कई बार खराब हो जाते थे. ऐसे में महिला को आराम देने के लिए उसे पीरियड्स के दिनों में पूजा न करने की छूट दे दी गई थी और वो अपना पूरी तरह खयाल रख सके, इस कारण उसे रहने के लिए एक अलग कक्ष या जगह दी जाती थी।

बिस्तर खराब न हों, इस कारण महिला जमीन पर अपना अलग बिस्तर बिछाकर सोती थी. लेकिन मानसिक पूजा और जाप की कभी मनाही नहीं थी। समय बीतता गया लेकिन लोगों ने इन वजहों को जानने का प्रयास नहीं किया इसलिए ये एक रुढ़िवादी सोच बन गई. देखा जाए तो आज के समय में पीरियड्स के दौरान स्वच्छता और ऊर्जा दोनों को बनाए रखने के तमाम साधन हैं। ऐसे में वजह को समझकर नियमों में बदलाव करने की जरूरत है।

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